आशा, खुशियों और जीवन की किरणें: जानिए उन प्रेरणादायक कहानियों के बारे में, जहाँ कैंसर से जूझने वाले मरीजों ने अपने संघर्ष को दूसरों के लिए आशा और हिम्मत की मिसाल बना दिया।

आशा, खुशियों और जीवन की किरणें

ब्लॉग 7

📅 08/11/2025

कुछ कहानियाँ ऐसी होती हैं जिन्हें सुनाना और साझा करना ज़रूरी होता है।

60 साल की स्वस्थ महिला श्रीमती वर्मा की नाक की हड्डी टेढ़ी हो गई थी, जिससे उन्हें बार-बार सिरदर्द और जुकाम की समस्या रहती थी। डॉक्टरों की भाषा में इसे डीएनएस (Deviated Nasal Septum)” कहा जाता है।
यह एक सामान्य, छोटी सी सर्जरी थी।

लेकिन ऑपरेशन के दौरान डॉक्टरों को हैरानी हुई जब उन्हें नाक की टेढ़ी हड्डी के अंदर एक ट्यूमर मिला। सर्जन ने बहुत सावधानी से वह ट्यूमर निकाल दिया।

सर्जरी के बाद श्रीमती वर्मा ठीक हो गईं और उन्हें रेडिएशन थेरेपी की ज़रूरत पड़ी। इसी दौरान मेरी मुलाकात उनसे और उनके परिवार से हुई।

उनके पति श्री वर्मा हमेशा खुशमिज़ाज रहते थे और वेटिंग एरिया में दूसरे मरीजों से बातें करते रहते थे।
वो हंसते हुए मुझसे कहते —

“डॉक्टर साहब, मेरी पत्नी का अच्छा ख्याल रखना। इस उम्र में दूसरी पत्नी तो मिलेगी नहीं!”

श्रीमती वर्मा की बेटी नंदिनी हर दिन मां के साथ आती थी। नंदिनी शादीशुदा थी, दो बच्चों की मां थी और मुंबई में रहती थी। लेकिन मां के इलाज के दौरान वह कुछ महीनों के लिए दिल्ली आ गई।

एक दिन श्रीमती वर्मा ने मुझे एक ब्लड टेस्ट रिपोर्ट दिखाई। रिपोर्ट देखकर मैं चौंक गई — उसमें ब्लड कैंसर लिखा था।
मैंने पूछा, “ये रिपोर्ट किसकी है?”
उन्होंने कहा, “ये मेरी बेटी नंदिनी के 8 साल के बेटे विनायक की है। उसे पिछले 10 दिनों से बुखार था।”

मैंने तुरंत उन्हें पीडियाट्रिक ऑन्कोलॉजिस्ट से मिलने की सलाह दी।
मुझे लगा — यह परिवार एक साथ दो कैंसर मरीजों का इलाज कैसे संभालेगा?

लेकिन उन्होंने अद्भुत धैर्य और साहस दिखाया।
नंदिनी के लिए यह बेहद कठिन था — मां और बच्चे, दोनों का इलाज एक साथ।
विनायक का इलाज एक साल तक चला। उसे उस साल स्कूल भी छोड़ना पड़ा।

आज 10 साल बाद, दोनों स्वस्थ हैं और कैंसर मुक्त हैं।
विनायक अब MBBS कर रहा है — और जल्द ही डॉ. विनायक बन जाएगा!
क्या इससे बड़ी खुशी हो सकती है?

नंदिनी ने अपनी नौकरी छोड़ दी और अब वह कैंसर मरीजों की मदद करने वाले एक NGO से जुड़ी है।
श्रीमती वर्मा आज भी शांत और गरिमामयी हैं, और श्री वर्मा पहले की तरह ही मज़ाकिया और खुशदिल हैं।

जब मैं यह सच्ची कहानी लिख रही हूँ, मेरी आंखों में खुशी और गर्व के आंसू हैं।

कभी-कभी ज़िंदगी बहुत कठिन होती है।
पर अगर ज़िंदगी कठिन है —

तो हमें उससे भी ज़्यादा मज़बूत बनना चाहिए।