ब्लॉग 6
📅 19/08/2025
दो महिलाएँ, अनंत शक्ति: प्रेरणादायक सबक
मुझसे अक्सर पूछा जाता है — मैं इतनी पीड़ा झेलने वाले मरीजों का इलाज करते हुए ताकत कहाँ से लाती हूँ?
मेरा जवाब हमेशा एक ही होता है —
“मेरी ताकत मुझे मेरे मरीजों और उनके परिवारों से मिलती है।”
उनका साहस, उनका धैर्य और उनका जज़्बा मुझे हर दिन प्रेरित करता है।
पाठ 1: नैना का साहस
नैना, 34 वर्षीय विवाहित महिला, को स्तन कैंसर (Breast Cancer) का पता उस समय चला जब देश में COVID-19 महामारी चल रही थी।
वह दिल्ली के अशोक विहार में रहती थीं और गुरुग्राम में सर्जरी व कीमोथेरेपी के बाद हमारे पास रेडिएशन थेरेपी के लिए आईं।
लंबी, खूबसूरत और आत्मविश्वासी नैना, आठ साल से शादीशुदा थीं और उसी समय माँ बनने की कोशिश कर रही थीं जब कैंसर ने उनकी ज़िंदगी की दिशा बदल दी।
महामारी के कारण उनके माता-पिता फ़रीदाबाद में रह गए और उनके साथ नहीं आ पाए। एक दिन उनके पिता ने फोन पर कहा —
“बेटी, 34 साल की उम्र ज़िंदगी का मज़ा लेने की होती है, ना कि कैंसर झेलने की।”
लेकिन नैना ने बड़ी शांति से कहा —
“पापा, चिंता मत करें। अच्छा हुआ ये बीमारी अभी हुई जब मेरा शरीर मज़बूत है। अगर ये बाद में होती, तो शायद मैं इसे सह नहीं पाती।”
उनकी बात सुनकर मैं भावुक हो गई।
कैंसर सिर्फ दवाओं से नहीं, बल्कि हिम्मत और सोच से भी लड़ा जाता है।
नैना ने मुझे सिखाया कि इलाज का आधा हिस्सा शरीर में होता है, लेकिन असली जीत मन की ताकत से होती है।
पाठ 2: मीनाक्षी का दृष्टिकोण
एक और योद्धा महिला थीं — श्रीमती मीनाक्षी।
वह हमारे स्तन कैंसर सपोर्ट ग्रुप की सदस्य थीं और उन्होंने कैंसर से दो बार लड़ाई लड़ी —
पहली बार दाएं स्तन में, और दस साल बाद बाएं स्तन में।
ग्रुप मीटिंग में उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा —
“मेरे पति ने मुझे कभी हेयरस्टाइल बदलने नहीं दिया, लेकिन कैंसर ने मुझे वो मौका दो बार दिया।”
यह बात सुनकर सब मुस्कुरा उठे।
फिर उन्होंने कहा —
“डायबिटीज़ या ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों में उम्रभर दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं, लेकिन कैंसर का इलाज सिर्फ 6–8 महीने चलता है।”
उनकी सकारात्मक सोच ने सबको प्रभावित किया।
सच में, ज़िंदगी नज़रिए पर निर्भर करती है।
नैना और मीनाक्षी दोनों ने सिखाया कि उम्मीद और मानसिक शक्ति सबसे कठिन सफर को भी आसान बना देती है।
हर मरीज और परिवार को मेरी शुभकामनाएँ —